Sunday, September 13, 2015

ये मोतिआँ और न गिरने दो

न कुछ चाहा, न कुछ सोचा
बस उसके लिये खुदको सौँप दी !
ये प्रेम, कोमलता ही सदियों से
आपको लूटती, तड़पाती आ रही है ।

हे नारी !
और कितना साहस है दिलमें
पता है,
ये भन्डारा कभी खाली न होगा ।
ममता, प्रेम के सुमन कभी मुर्झाते नहीं
फिर ये अनमोल मोतिआँ क्युँ गिरजाते
इनको समेटे रखो, खुदके लिये ।

फरेब की ज़िन्दगी, निष्ठुर समाज में
क्या मिला, कुछ हासिल हुआ ?
सब तो खोया है, लुटाया है ।
ये सन्सार कभी सुधरेगा नहीं
सदियों से उसकी अहं के लिये
आपको बलि चढ़ाता आया है

खुदके लिये कभी समझो
ये ईश्वर कोई और है
अब अमृत की धारा को रोको
ये मोतिआँ और न गिरने दो ।

(सभी नारिओँ को समर्पित) 
             सर्वेश्वर मेहेर - १३-०९-२०१५