Saturday, December 10, 2016

वैदेही

तुम इतना दर्द छुपाके बैठी हो
ज़मानों से किसी कोने में
सब को चाहिए बस तुम
और तुमने कभी ज़िक्र भी नहीं किया
तुम्हारी इच्छा अभिलाषा ।

कैसी है ये पहेली
जब तुम गिलास भर पानी लाती हो
ये आँखें गिलास से भी ज्यादा भरी थी ।
खुले आसमान में उड़ने को डरती हो
शायद फिरसे कोई पंख न काट दे ।

ये लोगों की बंधनों से छूटो
ये गालों पर, चेहरे पर सजना
आँखों में काजल से आँसूँ छिपाना
लबों को लालिमा की कसक में ओढ़ना
शरीर को सँवारना
किसी और के लिये
कभी तो खुद के लिये सँवारो ।

बचपन से खेलना, चाहना
आकांक्षाओं का हनन जब हुआ
तुमने भी अपना लिया झूठे मुस्कान
और बाँटने लगी दिलों में मुस्कराहट की पुड़िया
दिल को सुकून के लिए ढूंढ़ी हो
कितने चेहरे, कितने माहौल
लेकिन एकांत शांति ही मिला नहीं ।

मैं कोई पंख दे सकूँ या नहीं
लेकिन उड़ना तुमको ही है
कैद की ज़िन्दगी कभी ईश्वर ने दी नहीं
ये तो हौंसलों की उड़ान है
आगे की रास्ते सब पड़े हैं
तुम्हें बस एक कदम फिर से शुरू करना होगा ।