Tuesday, February 14, 2017

साधना - दो धारी तलवार

हे शक्तियां, मुझे ऐसे लुक्काछुप्पी खेल खेलने में आनंद नहीं आता । क्या भक्त और आराध्य के बीच में इतनी परीक्षा , छल शोभा देता है कि भक्त या साधक थका हारा मर जाये । यदि मिलना ही है तो प्रत्यक्ष आके मिलो । यूँ वेश बदलके आना और उलटे सीधे तरीके के मिलना, इन सब से मैं थक चुका हूँ । मिलना है तो सीधे मिलो, नहीं तो नहीं ।

ये सुक्ष्म और स्थूल में आपको इतनी तकलीफ क्यों है ? हालांकि आपके लिए तो सब एक खेल ही है । या तो मुझे सूक्ष्म में जाने का मार्ग दिखाओ, नहीं तो खुद स्थूल में आजाओ प्रत्यक्ष । पूजा, जप, तप, ध्यान सब कुछ तो किया, और बाकी क्या रहा ? ईश्वर की उपलब्धि क्या इतनी जटिल, कठिन है?

संसार की इतनी जटिलता ने मुझे यूँ पकड़ के रखा है कि मैं चाहूँ तो भी माया से परे नहीं हो सकता । और जब मैं माया में घुसने की प्रयास करूँ तो आप कठिन मार्ग चुनने में विवश करते हो । क्या करूँ कुछ समझ नहीं आता । ये दो धारी तलवार में चलना बहुत ही कठिन है । सब कुछ गँवाना पड़ता है । और फिर भी कुछ हासिल नहीं होता । ये दशम द्वार का उन्मोचन ही ब्रह्माण्ड के रहस्य का खुलासा होगा ।