Monday, January 12, 2015

श्मशान

श्मशान से पबित्र
हो नहीं सकता
ना कोई स्थल
ना कोई स्थान ।
न मालुम इस भूमि में
प्रज्वलित अग्नि
सदियों से
कितने जीवों के
प्राणरहित देहों की
आहुति लेती आ रही है
और लेती रहेगी ।

कितने योद्धा, राजा, साधु, नेता
भस्म हुए,
प्रज्वलित अग्नि के रुप में
महाकाल की जिव्हा में ।
घमण्ड, प्रेम, द्वेश, लाज भी
बलि चढ़े यहाँ ।
सभी को राख में ही मिलना है
सिखाती यह ज्ञा
शुन्यता की
शरीर से मुक्ति की, चेतना की ।

पुण्याश्रय है श्मशान
है स्वच्छ, निर्मल
न कोई भेदभाव है उसमें
उससे डरकर भाग नहीं सकते ।
ना पृथ्वी, आकाश, पाताल में,
कहीं भी कोई स्थान नहीं
जहाँ छिपकर तुम बच सकते ।

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