Sunday, April 10, 2016

मैं, माला और वो

जीवन के न जाने कितने साल ऐसे ही बीत गये, बिना कुछ किये, बिना कुछ हासिल किये । यद्यपि सान्सारिक क्षेत्र में इन सबका महत्व है, लेकिन मेरे दृष्टि में गौण हैं । मैं अन्दर ही हमेशा ढुन्ढ रहा था, उसको किसी भी तरह जानने के लिये, उसकी झलक पाने के लिये । शायद इसकी नीव मेरे दादाजी ने रखी थी मेरे बचपन में । उनकी सतत चेस्टा हम लोगोंको सही रास्ते पे लाने के लिए बनी रही । मेरे दादाजी श्री नारायाण भरोसा मेहेर – एक महान व्यक्तित्व थे । मुझे लगता है उनके पास कुछ दैवी शक्तियां थीं । वे कवि, लेखक, ज्योतिषी, वैद्य और शिक्षक थे – सभी क्षेत्रमें वे सिद्धहस्त थे । उनके पिताजी श्री मनोहर मेहेर प्रसिद्ध कवि, ज्योतिषी थे । बचपन में मेरे दादाजी से उनके बारे में बहुत कुछ जाना, वे असामान्य प्रतिभा के योग्य अधिकरी थे । उनके लिखित पुस्तकें आज भी जनमानस में प्रचलित हैं ।

बचपन में हम सिनापालि में रहते थे, जो कि हमारा गांव है । गांव की वो मधुर चित्र आज भी मेरे मन में दिखाई देती है । १९८७ की बात है, मेरी आयु ५ साल थी । हमारे घर में एक ब्लाकबोर्ड था, जहाँ दादाजी ने बहुत कुछ सिखाया था । अमरकोष भी पढ़ते थे । ज्योतिष का ज्ञान भी मिला, हालाकि अभी सब भुल चुका हुँ । उनकी कविताओं को लिखना, उनके साथ पुजा करना, और न जाने अनगिनत पौराणिक कथाएँ सुनना – ऐसी अनेक अभुले स्मृती हैं जो हमेशा मनके किसी कोने से मुझे अध्यात्म में जाने के लिये प्रेरित करते हैं । मुझे आभास है, दादाजी और परदादाजी सुक्ष्म रूप से मुझे मार्गदर्शन दे रहे हैं ।

जीवन के ९-१० साल के अनमोल समय जो दादाजी के साथ रहा, वो सबसे बड़ी उपलब्धी है । मेरे जैसे अन्य बच्चे खेलते, कुदते, शैतानी करते, पढ़ते, लेकिन हमारे परिवार में इसके साथ सात्विक वाताबरण का प्रभाव बड़ा गहरा असर किया है, जो उनके कारण था । जीवन के रस्ते पर संयोग से मुझे बहुत तीर्थों, महात्माओं का दर्शना हुआ है । पूज्य गुरुजी निखिलेश्वरानन्द जी से दीक्षा लेने के बाद जीवन ने नया मोड़ लिया । उनके प्रेरणा से मुझे अध्यात्म और ज्ञान से विज्ञान के क्षेत्र में जाने का पथ खुलगया, जो अभी मैं चलरहा हुँ ।

बोलतें हैं ना – भगवान के घर में देर है, अन्धेर नहीं । अगर कोई सच्चे दिल से कुछ भी करने का अथक, निरन्तर प्रयास करे तो अवश्य उसे प्राप्त होगा । दुनिया में बहुत सारे रहस्य हैं, जो की अच्छे जिज्ञासु को जानना चाहिये । सबसे बड़ा है आत्मज्ञान । इसे प्राप्त करने के लिये नचिकेता का उदाहरण सबसे श्रेष्ठ है । हमारे सनातन वैदिक धर्म, शास्त्र में इसे इतनी गुढ़ता से बताया गया है की इसको सही में जानने के लिये कठिन से कठिन प्रयास करनी पड़ेगी । सभी ने गुप्त जरीये से प्रकट किया है । जैसे -

कवीर की वाणी में –
समुद्र में बुन्द समाहि, यह जानत सब कोय ।
बुन्द में समुद्र समाहि, विरला जाने कोय ॥

गोस्वामी तुलसी दास लिखते हैं –
सीयाराम मय सब जग जानि
करऊं प्रणाम जोड़ी युग पाणी ।


अब इस अनुभूती को प्राप्त करने की प्रयास चालु है मुझ में । सन्सार रहस्यमय और विज्ञानमय है । इस विज्ञान को समझ ने के लिये अन्दर की वैज्ञानिक शक्ति को जगानी है । 

                                         क्रमशः

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