Thursday, July 12, 2018

कुंडलिनी जागरण का अपरोक्ष अनुभव (Experience of Kundalini Awakening)


मैं माताजी के साथ जगन्नाथ मंदिर पूरी में कई बार आया । बिना प्रभु कृपा के यह संभव नहीं की कोई बार बार आये और वह भी 10 दिनों तक रुके । लोगों के पास धन है, समय भी है, फिर भी प्रभुजी के पास नहीं आते । हम दोनों के ऊपर जगन्नाथ जी का विशेष अनुकंपा रहा है । कई अलौकिक अनुभूतियाँ हुई है । इस बार पूरी में 8 दिन रुक के 20 जून को हम गुवाहाटी की तरफ गए अम्बूवाची मेला में शामिल होने के लिए । 21 जून को कामाख्या देवी जी का दर्शन हुआ 4 घंटे लंबे समय के बाद । खचाखच श्रद्धालुओं से भीड़ भरा हुआ था । 22 जून से मंदिर बंद हुआ और भक्तों का विशाल समूह हर समय मंदिर परिसर तथा आसपास के जगह पे आसानी से नज़र आता था । कई साधु, सन्यासी, तांत्रिक, मांत्रिक आदि अपना डेरा जमाए हुए बैठे थे । हमने एक चक्कर पूरा घूमकर सबको देखा । माताजी ने बोला कि इन सब में कोई एक भी निष्काम भक्त नहीं है, सब में इच्छा लालसा भरी हुई है और सब तामसिक भक्त हैं । कामाख्या पीठ तंत्र क्षेत्र का सर्वोच्च स्थान है । तांत्रिकों से भरा ये पीठ हमेशा साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ है । कामाख्या माता हर वर्ष ऋतुमती बनती हैं और मंदिर 4 दिन के लिये बंद होता है । इन दिनों में देवी जी की अद्भुत कृपा होती है, पूरा मंदिर परिसर एक विशेष ऊर्जा से भरा होता है और जो भी इस आध्यात्मिक वायुमंडल में आता है, उसका चमत्कार परिणाम अनुभव हुआ है । इसीलिए साधकमण्डली हमेशा इस सुनहरा अवसर का लाभ उठाने के लिए तत्पर रहते हैं । इन दिनों में किया हुआ एक जाप हज़ार गुना का फल देता है । विशाल जनसमूह को देखकर आसाम सरकार ने पूरा व्यवस्था अच्छी तरह किया था । कामाख्या मंदिर कामरूप पर्वत पे है और निचेे से पदयात्रा करनी पड़ती है मेले के दिनों में, क्योंकी गाड़ियों का ऊपर आना बर्जित होता है । 3 किलोमीटर पैदल चढ़के हम जब मंदिर में आये तो, भयंकर रूप से भीड़ था । मंदिर के चारों तरफ साधकों का जाप, ध्यान चल रहा था । हम को एक जगह मिल गया और हम आसान बिछा कर बैठ गए जाप करने । माताजी तो बैठते ही उनको देवीजी का अलौकिक दर्शन हुआ । मैं बैठते ही हिलने लगा जोर से आगे और पीछे, पेंडुलम धड़ी की तरह । कुछ देर बाद हम उठे और एक दूसरे जगह पे जाके विश्राम किए । पूरी रात मंदिर में ही रुके । लोगों का भक्ति अटूट था, जगह जगह पर ध्यान, माला जाप, भजन, कीर्तन आदि । अगले दिन सुबह होते ही हम निकल आये मंदिर से । शारीरिक थकान के कारण हमने दूसरे दिन मंदिर जाना ठीक नहीं समझा । माता को तो श्रद्धा और भक्ति से कहीं भी बुलाया जा सकता है । रातको हमने घर पे ही ध्यान किया और कुछ दैविक अनुभव हुआ ।


आनेवाले दिनों में हम कभी मंदिर जा न सके क्योंकि शरीर कमजोर पड़ गया था । 25 जुलाई दोपहर को दिव्यांशी माँ का अचानक सेहत बिगड़ गया । वो मुझे जोर से पुकारे और वो अत्यंत पीड़ा में थी । उनका शरीर काँप रहा था, शर दर्द से फटा जा रहा था । पूरे शरीर पे रोंगटे खड़े होगये और ठंडा पड़ गया । उनका मानसिक सन्तुलन तो सही था लेकिन उनको लगता था कि वो संतुलन खो रही हैं । एक दिव्य ज्योति हमेशा उनको दिखाई दिया, आँख बंद या खुला हुआ हो । उनके पूरे शरीर पे एक सुगंध भर गया था । उनको देवी देवताओं का दर्शन हुआ और लगा कि वो सब उनके पास ही खड़े हैं और मुस्कुराट से देख रहे हैं । अपने गुरु कृपालु महाराज और श्रीकृष्ण उनके पास बैठे हैं । विभिन्न प्रकार के किरणों और तरंगों से उनका शरीर ढाका हुआ लगता था । आंखों से अनवरत आंसू बहती भक्ति भाव से । कई दिव्य अनुभूतियाँ का वर्णन यहाँ पे नहीं कर सकता । अगले कुछ दिनों तक उनका शरीर बिगड़ने लगा, उनको बुखार, सर्दी, शरदर्द हमेशा लगा रहता था । उनको और भूख नहीं लगती थी , जबरदस्ती से ही खाना खाती थी, उनको खाना रुचिकर नहीं लगता । नींद गायब हो चुका था, फिर भी वो कभी कमजोर अनुभव नहीं किये । उनका शरीर उनको अत्यंत सुंदर, हलका लगा और उनके मन में किसी भी प्रकार से आसक्ति नहीं रहा । हमेशा एक अलग दुनियां में डूबी रहती थीं । मुझे बार बार पूछती की कहीं वो पागल तो नहीं हो गयी । कुंडलिनी सर्प उनके अंदर से ऊपर उठ कर आज्ञाचक्र और सहस्रार को भेद कर ऊपर आता और कभी अंदर चला जाता । उनके सर पे हमेशा पीड़ा रहती थी, आज्ञा चक्र के सामने और पीछे भाग में, फिर सहस्रार में  और ललाट के दो को कोनों में । सभी चक्र को वो खुद देख सकी और उनका रंग तथा चक्र से जुड़ी हुई दिव्य भाव का बयान करती । वो बोलती वो अपने शरीर के अंदर सब कुछ देख पा रही, जैसे रक्त का प्रभाव, सब ग्रंथि, स्नायुतन्तु, सब कुछ । और उन्होंने मेरेे अंदर भी सब कुछ देख पा रही थी । दूरश्रवण, दूरदर्शन, सूक्ष्मदर्शन, मन को पढ़ना, आदि अस्ट सिद्धि का अनुभव करने लगी । 26 जुलाई को हम गुवाहाटी छोड़कर बैंगलोर आगये । उन्होंने कई सारे दवाइयां ली , लेकिन किसीका कुछ असर नहीं हुआ । सरदर्द, सर्दी कम होता ही नही था ।

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