Thursday, October 30, 2014

सम्पर्क

नज़र
कैसी है ये नज़र
देखे जब मगर
होवे सब बेअसर

जादू
है ये काशिश की
फैला है चारों और
बरसे पुरे  हम पर

कड़ियाँ
बना ये कैसे
लगे हैं जुड़ने
ठहरे उम्र भर

कभी तो पल ये
बने थे हमारे लिए
सोचूं तो समेटे हुए ज़िन्दगी के
जीना है अब उसे लेके

बिन बोले सुने सब कैसे
बिन मांगे करे सब कैसे
संपर्क हुआ अनोखा
टूटे उम्र भर

आभार ये किसका
दिया मुझे किसने
चारों और फैले
बिन बोले सब जाने

अनजाने से बने थे
पता नहीं रिश्ता उतना पुराना
फिर से जुड़े बीते हम
यही आश है अब

1 comment:

KhushiG said...

Hmm nice. Actually interesting to see this side of yours. Never thought you could such beautiful romantic pieces. Great work. Love brings out the best of everyone. 💫👏👌👍💗